ई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट के जजों को रिटायरमेंट के बाद समय-समय पर कांग्रेस और भाजपा शासित सरकारों द्वारा नए पदों पर नियुक्ति दी जाती रही है। इस संबंध में कानूनी मामलों की थिंक टैंक संस्था विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की एक रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इसमें बताया गया है कि 1950 से 2016 तक सुप्रीम कोर्ट के 100 में से 70 रिटायर्ड जजों ने रिटायरमेंट के बाद केंद्र सरकार से नए पद स्वीकार किए हैं। इनमें सुप्रीम कोर्ट के 44 चीफ जस्टिस शामिल हैं।
प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले दो जस्टिस ने कहा था- कोई नया पद नहीं लेंगे – तीन महीने पहले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कान्फ्रेंस करने वाले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन बी लोकुर के बारे में भी चर्चा फैली थी कि वे नए पद की उम्मीद में ऐसा कर रहे हैं। पर बाद में जस्टिस चेलामेश्वर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने सार्वजनिक तौर पर घोषणा की थी कि वे अपने रिटायरमेंट के बाद कोई नया पद नहीं लेंगे। जस्टिस चेलामेश्वर इस साल 22 जून को और जस्टिस जोसेफ 29 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
चीफ जस्टिस की बेंच अयोध्या, आधार और बहुविवाह जैसे मामलों की सुनवाई कर रही है
– चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में विशेष बेंच अयोध्या विवाद और आधार से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रही हैं। हाल ही में चीफ जस्टिस ने बहुविवाह और हलाला कुप्रथा पर सुनवाई करने का फैसला लिया है।
ये हैं बड़े नाम
जस्टिस जीटी नानावटी: साल 2000 में रिटायर हुए थे। इन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद दो आयोगों का पदभार संभाला। 2002 में गुजरात दंगों के जांच आयोग की अध्यक्षता भी की। जस्टिस पीवी रेड्डी: 2005 को सेवानिवृत्त हुए थे। बाद में लॉ कमीशन के चेयरमैन बने थे। जस्टिस एके माथुर:7 अगस्त 2008 को सेवानिवृत्त हुए थे। बाद में आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के चेयरमैन का पद ग्रहण किया था। जस्टिस अरिजित पसायत: 10 मई 2009 को सेवानिवृत्त हुए। फिर कंपीटिशन एपेलेट ट्रिब्यूनल के चेयरमैन का पद ग्रहण किया था। जस्टिस पीपी नाओलेकर: 2009 को सेवानिवृत्त हुए। मध्यप्रदेश के लोकायुक्त बने। जस्टिस एसबी सिन्हा: 2009 को सेवानिवृत्त हुए। बाद में टेलीकॉम डिस्प्यूट एंड सेटलमेंट एपेलेट ट्रिब्यूनल के चेयरमैन रहे। जस्टिस तरुण चटर्जी: 2010 में सेवानिवृत्त हुए। अरुणाचल के सीमा विवाद को निपटाने के लिए कमिश्नर का पद ग्रहण किया था। जस्टिस केजी बालाकृष्णन: 2010 में रिटायर हुए। बाद में मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन का पद संभाला। जस्टिस एचएस बेदी:2011 में सेवानिवृत्त हुए थे। इसके बाद पुलिस एनकाउंटर में होने वाली मौतों की जांच के लिए बनाई गई स्पेशल टास्क फोर्स के प्रमुख का पदभार संभाला। जस्टिस मार्कंडेय काटजू: 2011 में सेवानिवृत्त हुए थे। बाद में प्रेस काउंसिल के चेयरमैन रहे। जस्टिस आरवी रविंद्रन:2011 को सेवानिवृत्त हुए। बाद में एनजीटी के चेयरमैन बने। जस्टिस पी सताशिवम:2014 में सेवानिवृत्त हुए थे। इसके बाद केरल के राज्यपाल बनाए गए। जस्टिस बीएस चौहान:2014 में सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद लॉ कमीशन के चेयरमैन बने। जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय:2015 में सेवानिवृत्त। लॉ ट्रिब्यूनल के चेयरमैन बने। जस्टिस एचएल दत्तू:2015 काे सेवानिवृत्त हुए। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन हैं। जस्टिस स्वतंत्र कुमार: सेवानिवृत्त के बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के चेयरमैन बने।
सात दलों के पास लोकसभा में 100 सांसद नहीं, इसलिए राज्यसभा की शरण में पहुंचे
– कांग्रेस के नेतृत्व में 7 विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाना चाहते हैं। इन पार्टियों के नोटिस पर 64 मौजूदा सांसदों के दस्तखत हैं। राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए 50 सांसदों की जरूरत होती है। इन पार्टियों ने मजबूरी में प्रस्ताव के लिए राज्यसभा का रास्ता चुना है।
– दरअसल, लोकसभा में महाभियोग लाने के लिए प्रस्ताव पर कम से कम 100 सदस्यों के दस्तखत जरूरी होते हैं। पर इन 7 पार्टियों के पास लोकसभा में सिर्फ 72 सांसद ही हैं। यदि सभापति ने प्रस्ताव मंजूर कर लिया तो दीपक मिश्रा महाभियोग का सामना करने वाले देश के पहले चीफ जस्टिस होंगे।
कांग्रेस सरकार में जस्टिस दीपक मिश्रा हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे – कांग्रेस की नरसिंह राव सरकार ने 1996 में जस्टिस मिश्रा को हाईकोर्ट का जज बनाया था। यूपीए सरकार ने 2011 में उनको सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया था। अब कांग्रेस उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाई है।
जब भाजपा महाभियोग के पक्ष में थी…
– सुप्रीम कोर्ट के जज वी रामास्वामी को राजीव गांधी सरकार ने चीफ जस्टिस बनवाकर चंडीगढ़ हाईकोर्ट भेजा था। वे वहां जब तक रहे, तब तक टाडा के अभियुक्त जमानत पाते रहे। इसके विरोध में 1991 में राष्ट्रीय मोर्चा, वामपंथी दल और भाजपा के 108 सांसदों ने लोकसभा में रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग का नोटिस दिया था।
25 साल में 6 जजों के खिलाफ महाभियोग की कोशिश, कामयाबी एक में भी नहीं
1. 1993 रामास्वामी महाभियोग फेस करने वाले पहले जज थे – सुप्रीम कोर्ट के जज वी. रामास्वामी को महाभियोग का सामना करने वाला पहला जज माना जाता है। उनके खिलाफ मई 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। पर यह प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया था।
2. 2011 पहला ऐसा महाभियोग जो राज्यसभा में पास हो गया – 2011 में कोलकाता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन को अनुचित व्यवहार में महाभियोग का सामना करना पड़ा। यह राज्यसभा में पास हो गया था। पर लोकसभा में वोटिंग होने से पहले ही जस्टिस सेन ने इस्तीफा दे दिया।
3. 2011 महाभियोग प्रस्ताव पेश होने से पहले ही इस्तीफा – सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पीडी दिनाकरन के खिलाफ भी कुछ दलों ने महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी की थी। पर इससे कुछ दिन पहले ही जस्टिस दिनाकरन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
4. 2015 दो जजों के खिलाफ हुई थी प्रस्ताव लाने की तैयारी – 2015 में गुजरात हाईकोर्ट के जज जेबी पार्दीवाला और 2015 में ही जबलपुर हाईकोर्ट के जस्टिस एसके गंगेले के खिलाफ भी महाभियोग लाने की तैयारी हुई थी। पर ये प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी थी।
5. 2016-17 नागार्जुन रेड्डी के खिलाफ जरूरी समर्थन नहीं – आंध्र प्रदेश/तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के खिलाफ 2016 और 2017 में दो बार महाभियोग लाने की कोशिश की गई थी। पर इन प्रस्तावों को कभी जरूरी सांसदों का समर्थन नहीं मिला।
लोकसभा में इन 7 पार्टियों के सदस्य
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